हसरत
हसरत
जिंदगी की हर हसरत यहां पे झूठी है
जितना पकड़ा वो रेत हाथों से छूटी है
हम देखते रह गये आंखों के सामने ही,
हमारे हाथों की लकीरें बेवक्त ही टूटी है
जिसने शीशा बनकर रिश्ता निभाया है,
उसकी क़िस्मत सदा ही यहां पे फूटी है
जिंदगी की हर हसरत यहां पे झूठी है
जितना पकड़ा वो रेत हाथों से छुट्टी है
हसरतों को तोड़ा,आंसुओ को छोड़ा,
वो बना,ख़ुद की मृत संजीवनी बूटी है
पत्थरों के बीच झरना,वो ही बनता है,
जिसने फूलों को शूलों से दी छुट्टी है
आंखों में उसके होती यहाँ पे ज्योति है,
जिसने ईमानदारी से निभाई ड्यूटी है
उसकी यहाँ पे हर हसरत पूरी होती है
जो पानी पे चलाता सत्य-नाव अनूठी है!