हरसिंगार
हरसिंगार


अंधियारी रातों में,
दमक रहा तब श्वेत रूप।
सुरभित भाव विभोर प्रभंजन
पाकर सुगंध अनूप।
परियों सा सौंदर्य लिये,
तुम परिजात कोमल प्रसून।
रात्रि भर का ही जीवन,
प्रातः झर जाते नियमानुरूप।
हरसिंगार सुगंध तुम्हारी
मन हर्षित कर जाती है।
विभावरी पा साथ तुम्हारा,
खुद पर कुछ इतराती है।
केसरिया बिंदिया यों चमके,
जैसे हिम पर धूप,
रात्रि भर का ही जीवन,
प्रातः झर जाते नियमानुरूप।
देवों को तुम अधिक प्यारे,
माँ लक्ष्मी के हृदय दुलारे।
शेफाली के! प्रिय तुम सबके,
धवल दीप्ति अनुपम चमके।
तेरा रूप लुभाये सबको,
क्या रंक क्या भूप।
रात्रि भर का ही जीवन,
प्रातः झर जाते नियमानुरूप।