हर नारी...समानता की अधिकारी
हर नारी...समानता की अधिकारी
कुछ नया लिखना है आज
वही फेमिनिज्म या पुरुष प्रधानता की बातें नहीं
लड़की हूं....तो खुद से किए गए वादे सही...।
खुलकर जीऊंगी, सपने पूरे करूंगी
निडर होकर दुनिया में रंग नए भरूंगी
बस मुझको भी दे दो समानता का अधिकार
क्यों करते हो मेरे साथ दिखावे का व्यवहार।
बेटा तो कुछ भी बन जाए
पर बेटी तू अच्छे व्यवसाय में जाए ।
खाना बनाना जरूरी है आना
तो सिर्फ मुझे ही क्यों
मेरे भाई और पापा को भी ज़रा रसोई में बुलाना।
मार्शल आर्ट्स तो मैं भी सीख जाऊंगी
पर समाज की गन्दी नज़रों को कैसे रोक पाऊंगी
फर्क अब मुझे कुछ नहीं पड़ता
उन नज़रों को चाहिए काला पर्दा।
काम तो मैं भी उतना करती
तो मेरी जेब भी उतनी ही रकम से क्यों नहीं भरती।
अकेले कहीं मत घूमने जाना
अकेली लड़की तो गलत आमंत्रण का बहाना।
मैं रात में घूमु तो बेशर्म बेहया
पर तुम्हारा बेटा नाइट आउट करे तो वाह भाई वाह।
मुझे भी तो दो सब कुछ ओढ़ने की आज़ादी
विश्व में तभी तो बढ़ेगी सशक्त महिलाओं की आबादी।
मेरे विचार मत बांधो अपनी सोच की खूटियों से
मैं तो बहुत ज़्यादा हूं इस समाज की रूढ़ियों से।
मुझको भी उड़ान भाती है
बुलंद हौसलों के पंख बनाती है।
मैं ही दुर्गा, मैं ही शक्ति
मुझ में ही श्रद्धा, मुझसे ही भक्ति।
नहीं चाहिए मुझे महानता का उपहार
हर ओर हो मेरे लिए समानता का अधिकार।
एक थप्पड़ भी अब नहीं सहूंगी
गलत को गलत खुलकर कहूंगी।
मैं नहीं केवल नारी
सरंचना का एक रूप हूं
कमज़ोर तो हरगिज़ नहीं
बहन, बेटी, मां, पत्नी, दादी, नानी
अलग और अद्भुत हर स्वरूप हूं।
भले ही थक जाऊं सफ़र में
हार कभी नहीं मानूंगी
मेरा मोल कोई और क्या जाने
यह मैं स्वयं ही पहचानूंगी।