हर दिन हो दिवस वीर
हर दिन हो दिवस वीर
आजादी की कीमत उनसे पूछो
जो सेंध लगाये बैठे हैं अपने ही घर में
पूछो उन गद्दारों से कि क्या उन्होने
भी खोया है धरती के सपूत
भगत , सुखदेव , आजाद सा।
क्रांती की मशाल लेकर
चले जो अंगारों पे
शहीदों की कहानी लिखी
हुई है आज भी जालियां की दिवारों पे।
न जाने कितने ही घरों से निकले
बालक आजादी की राहों में
न जाने कितने माँ के आँचल
रंग गए बसंती उनके अपने लालों से।
आज भी रंग वही है बसंती
आज भी लालों का सीमा पर बह रहा रुधिर
क्यों वर्ष के दो दिन ही लगते हैं नारे
क्यों नहीं हर दिन हो समर्पित मने दिवस वीर।
हर दिवाली उनका भी हो घर रोशन
होली की रंगो से हो वो भी सरोबार
क्यों अगस्त औ जनवरी निश्चित है
क्यों दो दिन ही पूर्ण देश मनता त्योहार।
भूल जो जाओगे तुम अपना इतिहास
महान वीरों की गाथाओं का स्वर्णीम काल
आजादी की कीमत जानो और पहचानो
वरना ये वर्तमान आजादी बन जायेगी गुलाम काल।