हक़ीक़त...
हक़ीक़त...


मैं ज़िन्दगीनामा लिखता गया...
ग़मगीन लम्हों की
अनकही बातों ने मेरा
सूरत-ए-हाल बयां किया...
हर एक पल की
यादों में सराबोर
मेरा तन्हा दिल
रफ्ता-रफ्ता बर्फ-सा
पिघलता गया...!
जाम उठाने की
नौबत आई ही नहीं,
मैंने पैमाना-ए-दिल
छलका दिया...
यूँ मैख़ाना-ए-तबीयत
मचल गई...
शायराना दिल मेरा
प्यार की अदायगी में
दर-ब-दर भटकता गया...
नशा मगर टूट गया
मोहब्बत के ईरादों का !