हक़ का सवाल
हक़ का सवाल
वो पुरुष जो हर बार सिर्फ औरत से ही सवाल पूछता है आज
उससे मुझे कुछ सवाल पूछना है, जो सिर्फ सवाल पूछता है।
मेरे नाम की कोई सजावट तेरे तन पर नहीं
जो ना मेरे लिये कोई व्रत, ना उपवास करता है
आज मुझे उससे कुछ सवाल पूछना है, जो सिर्फ सवाल पूछता है।
नौकरी से आने के बाद, जिसे एक रोटी बनाने की दरकार नहीं
वो मेरे नौकरी से आने के बाद, खाने में क्या है ये सवाल पूछता है।
आज मुझे उससे कुछ सवाल पूछना है, जो सिर्फ सवाल पूछता है।
नौ महीने कोख में रखकर अपने, नाम जग ने जन्मे को तेरा दिया
जिसने नैपकिन भी नहीं बदली कभी, वो बदली गई नैपकिन का हाल पूछता है
आज मुझे उससे कुछ सवाल पूछना है, जो सिर्फ सवाल पूछता है।
जिसके लिये माँ- पिता का घर छोड़ा, नौकरी छोड़ी,
नींद सुकून और चैन भी छोड़ दिया
वो पुरुष जो सिर्फ अपने ही आगे बढ़ने की बात सोंचता है
आज मुझे उससे कुछ सवाल पूछना है, जो सिर्फ सवाल पूछता है।
सोच लिया है स्त्री ने भी, नहीं छोड़ना है अब कुछ भी
दो कदम अब उसे पीछे हटाना होगा,
कदमों को अपने स्त्री के कदमों से मिलाना होगा
सवाल पूछने वाले को भी, अब कटघरे में आना होगा
आज मुझे भी उससे जवाब चाहिए, वो जो सिर्फ सवाल पूछता है।
