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सौगंध मातृभूमि की

सौगंध मातृभूमि की

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तिरंगे को अब बलिदान नहीं-

अरि-मुण्ड चाहिए।

शौर्य की हर बूंद को-

रिपु-रक्त का कुंड चाहिए।


जला कर राख कर दो-

मस्तक दुश्मनों का,

देश को अब उसकी-

भस्म का त्रिपुंड चाहिए।


ना वाद ना प्रतिवाद-

ना कोई बात चाहिए।

मिटा दे 'ना-पाक' को-

बस ऐसा विशेष घात चाहिए।


तरस जाए 'पाकिस्तान'-

सूरज के उजाले को,

उस देश में होनी बस अब-

ऐसी अशेष रात चाहिए|।


नीति-अनीति-धर्म से ऊपर-

अब समवेत विरोध चाहिए।

पिघल जाए फौलाद धमनियों में-

ऐसा उबलता क्रोध चाहिए।


इतिहास मिटे, भूगोल मिटे-

बैरी का वर्तमान मिट जाए,

कायरों के नाश का-

बस ऐसा प्रतिशोध चाहिए।


चीर कर शत्रु की छाती-

रणचंडी- शोणित-पान करो।

उठो पार्थ की संतानों-

गांडीव का संधान करो।


पौरुषहीन, नर-पिशाच-

गीदड़ों की टोली है ये,

सौगंध मातृभूमि की तुमको-

विजय युद्ध विधान करो।

अब विजय युद्ध विधान करो।।


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