काश लौट आए वो बचपन
काश लौट आए वो बचपन
आ ! सपनों को अपने उछाल लें आज
कुछ मस्ती के पल भी गुजा़र लें आज,
गुनगुना लें चहकते मन से यहाँ
चलो कुछ नए फ़ितूर पाल लें आज।
बारिश के ये छींटे जो मुँह पे गिरे
लगा अँखियों में प्रेम-घन यूँ ही घिरे,
बरसी हैं मदमस्तियाँ जैसे गगन से
लबों से फूलों की खुश्बू झरे।
बदला समय हम बड़े हो गए
कहते हैं पैरों पे खड़े हो गए,
खुशियों वाली जेबें पैसों से भरी
रिश्ते दिखावटी आंकड़े हो गए।
सोचा था,
मिलेगी ढेरों खुशियाँ बड़े होकर कहीं
कोशिश बहुत की पर वो मिली ही नहीं,
कच्ची उम्र की पक्की वाली यारियाँ
प्यार की वो बयार फिर बही ही नहीं।
तब की खुशियों वाले रतजगे
मीठे ख्वाबों के रस में थे जो पगे,
आँखों की नींद छू मंतर हो गई
आज तो सो कर भी क्यों हम थके ?
स्मृतियों में बचपन को क्यों है जीना ?
उघड़ी यादों के पैबंद क्यों है सीना ?
जिंदगी जीने वालों की है यारों
ना बोलो, जवानी ने बचपन मेरा छीना।
हिसाब में थोड़ा तुम कच्चे रहो
मन के सदा तुम सच्चे रहो,
शरारत करना कोई बुरी लत नहीं
हाँ ! दिल से सदा तुम बच्चे रहो।
हाँ ! दिल से सदा तुम बच्चे रहो।।