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मातृभूमि का उदबोधन

मातृभूमि का उदबोधन

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वीरों ने फिर शीश चढ़ाए,

सीनों पर झेले वार हैं,

ओ रणचंडी, स्वागत है तेरा,

मेरे बेटे तैयार हैं |


रणभूमि की ख़ामोशी को,

अभी कोलाहल से भर देंगें ,

आहट से अपनी सेना की,

दुश्मन को विचलित कर देंगें |


तू साथ जरा रहना इनके,

मेरा इक एक क़र्ज़ चुकाएंगें,

दुश्मन के खौलते खून को,

ठंडा कर तुझे पिलाएंगें |


बर्फीली हवाएं भी इनकी,

गर्मी को न सह पाएंगी,

कोई रोक न पाएगा इनको

ये आगे ही बढ़ते जाएंगें |


एक पल भी चैन न ये लेंगे,

जब तक न विजयी हो जायेंगें,

तेरे सम्मुख, मेरे सपूत,

मौत का नंगा नाच नचाएंगें |


इस देश के ये दीवाने हैं,

और मौत के ये परवाने हैं,

मेरी खातिर, मेरे बेटे,

तेरे चरणों में शीश चढाएंगें |


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