बिकती है लज्जा
बिकती है लज्जा
बिकने लगी है बेटियां चंद के कागज पर,
ईमान बेच डाला, सम्मान बेच डाला,
आदर बेच डाला, प्रतिमान बेच डाला,
लिख दी, बिकी हैं इज्जत चंद के कागज पर..!
तू इंसान से कब शैतान बन गया ?
बसा बसाया घर झट से उजड़ गया,
जिस हाथ पर रक्षा सूत्र थे बंधे,
रक्षा करने वाला वो हाथ ही बिक गया।
इस बेटी की लज्जा पे तुझे शर्म न आयी,
बाप पाप बन गया, ये क्या हुआ भाई ?
अब और अत्याचार बर्दाश्त नहीं होता,
देख कर ये सार आज आख मेरी भर आयी।
अब रोज द्रोपदी का चीर हरण होने लगा,
संस्कृति खोने लगी, आचरण रोने लगा,
कब आओगे कान्हा अपनी मुरली सुनाने,
इस चीर हरण से अब हमे बचाने।
