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Prem Bajaj

Drama

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Prem Bajaj

Drama

होली

होली

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ना जाने कैसा तुने मुझ पर रंग डाला , तन पर तो कोई रंग नहीं है, मन रंगों से भर डाला।

मन मेरे में चुपके से आके बस गया एक नटखट ग्वाला, कोरी मन-चुनर को उसने भिगो डाला।भरी नैनों में राज ये पागल घर मचलता है , अल्साए नैनन भी तो सपनों में खो जाते हैं। 

कल्पना में मेरी कितने रंग बस गए , बताए नहीं बता पाती हूं, मन-मन्दिर में मोहिनी सूरत देख - देख मुस्काती हूं।

उसके मृदु स्वागत के लिए ऊर-द्वार खुला जाता है , चुपके से वो ग्वाला आकर मेरे मन -मन्दिर में बस जाता है।

ढलका जाता आंचल मेरा , पांव थिरक - थिरक जाते हैं। हर धड़कन मेरी गा रही गीत है, भाव चंचल हुए जाते हैं , मानो किसी गंगा तट पर यौवन धुला-धुला जाता है।

चुपके से वो ग्वाला मेरे ऊर-आंगन में आ जाता है।


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