होली
होली
ना जाने कैसा तुने मुझ पर रंग डाला , तन पर तो कोई रंग नहीं है, मन रंगों से भर डाला।
मन मेरे में चुपके से आके बस गया एक नटखट ग्वाला, कोरी मन-चुनर को उसने भिगो डाला।भरी नैनों में राज ये पागल घर मचलता है , अल्साए नैनन भी तो सपनों में खो जाते हैं।
कल्पना में मेरी कितने रंग बस गए , बताए नहीं बता पाती हूं, मन-मन्दिर में मोहिनी सूरत देख - देख मुस्काती हूं।
उसके मृदु स्वागत के लिए ऊर-द्वार खुला जाता है , चुपके से वो ग्वाला आकर मेरे मन -मन्दिर में बस जाता है।
ढलका जाता आंचल मेरा , पांव थिरक - थिरक जाते हैं। हर धड़कन मेरी गा रही गीत है, भाव चंचल हुए जाते हैं , मानो किसी गंगा तट पर यौवन धुला-धुला जाता है।
चुपके से वो ग्वाला मेरे ऊर-आंगन में आ जाता है।
