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Ajay Singla

Abstract

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Ajay Singla

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होली वो कुछ खास थी

होली वो कुछ खास थी

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होली के इस पर्व पर

याद आएं वो ज़माने

होली हॉस्टल में जो थी 

संग साथी वो पुराने।


अमित बंसल, किंग था एक

सुबह सुबह बिस्तर में ही

बाल्टी पानी की डाली

होली की शुरुआत थी।


टोली अब एक बन गयी थी

हर कमरे में थे जाते हम

कर रहे भारी तमाशा

चुपके से रखते कदम।


मोहन बैठा चाय पी रहा

पीछे से रंग डाला था

शीशे में देखा जो उसने

गोरा मुँह अब काला था।


अशोक के जब पास पहुंचे

शर्मा जी नहा रहे

नाश्ता टेबल पर उसका

हम सभी थे खा रहे।


बाथरूम से निकले तो फिर

गुलाल में नहा गए

कोई पहचाना न जाता

भूत से सब लग रहे।


बारी थी मुकेश की अब

मनोज भी वहीँ पर था

देखा दोनों पढ़ रहे हैं

गुजिया का डिब्बा पड़ा।


एक एक गुजिया मिली बस

वो समझ कुछ पाए न

किताबें नीली पीली हो गयीं

फर्श पर कीचड जमा।


अनिल गुप्ता मौज में था

पुराने गाने सुन रहा

टोली के आते ही सोचे

फँस गया बहुत बुरा।


महेश अपने कमरे में ही

पेल रहा वो दण्ड था

बॉडी लोहे जैसी उसकी

टूटा उसका घमंड था।


जब चार लोगों ने था पकड़ा

रंगों का बादल छा गया

बगल के कमरे से तभी

राणा भी वहां आ गया।


उठा लिया राणा को हमने

और रंग दिया नीला उसे

थोड़ा सा खिसियाया पर फिर

'' होली है '' बोला मस्ती में।


धर्मवीर छुपता था फिर रहा

चौहान ने पकड़ लिया

रंगो से उसे भर दिया

जब उसको था जकड लिया।


टोली जब बाहर चली तो

वार्डन थे मिल गए

एक एक कर फिर सबने

पैर उनके थे छुए।


गर्ल्ज़ हॉस्टल  में चलते हैं अब

पंकज शर्मा ने था कहा

उसकी तो वहां सेटिंग थी

हमारा वहां कुछ भी न था।


प्यार से एक दूसरे को

बस टीका थी वो लगा रहीं

भूतों ने रंग डाला तो

वो भी लगें तब भूतनी।


पहचान न पाए कोई कि

सामने उसके कौन थी

मस्ती के माहौल में इस

वार्डन भी मौन थी।


होसटल में वापिस आये तो

कुछ लोग भांग थे पी रहे

गिलास सबने ले लिया और

झूमें सब थे मस्ती में।


विष्णु और भगवान् आए वहां

लेकर मिठाइयां घर से वो

चट्ट किया था मिनटों में

और रंग दिया उन दोनों को।


विनय, जितेंद्र, अस्थाना, शैलेन्द्र

वो लोग भी वहां आ गए

प्रदीप गिटार बजा रहा

सब मस्ती में थे गा रहे।


नरेश, विश्नोई, शैलेश

घर पर वो थे गए हुए

भांग पी रहे थे जब

हम याद उनको कर रहे।


राजीव, विपिन, संजय सभी

डांस कर रहे थे वे

ट्रेन एक बनाई तब

शरत, सुमित, अभ्यंत ने।


नीरज, पवन, बघेल सब

गप्पें थे मारें कुर्सी पर

संतोष, रातुरी, वनज

थे टुन पड़े हुए धरती पर।


अजय, बृजेश भी वहां खड़े

भांग ली थी थोड़ी सी

रोहित, अमित, आलोक, पलाश ने

व्हिस्की की बोतल खोल दी।


अगले दिन की क्लास में

बस लड़कियां ही थी वहां

लड़के सब बिस्तर में पड़े

सर भारी उनका हो रहा।


वो दोस्त मुझको न भूलते

मुझे याद आएं होली के दिन

सब अपने अपने शहर में हैं

होली मने अब उनके बिन।



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