होली के रंग खेलने के व्यंग्य
होली के रंग खेलने के व्यंग्य
आया होली का त्योहार है आया होली का त्योहार है
रंगों की बारिश खुशियों की बौछार है
जानती हूं कि मौसम गुलाबी बहुत है
मगर ऐसी रुत में खराबी बहुत है
मानो मेरी तो ज़रा रुक जाओ
लगाओ गुलाल पर न मुझको भिगाओ
सुहाना है मौसम पर सर्दी की सुबह शाम है
आया होली का त्योहार है आया होली का त्योहार है
आज की ये होली न जाएगी सुखी
साल भर कि तरस जो सही बेरुखी
भिगा देगी आज ये रंगों की होली
संभालो ज़रा ये चुनरी ये चोली
ये एक साल की तरस का मुकाम है
आया होली का त्योहार है आया होली का त्योहार है
खेलूँगी होली भिगेगी ये चोली
रुकेगी नहीं आज ये बहारों की टोली
समा गहरा रहा है
नशा चढ़ रहा है
आओ री सखियों होली है आई
संग खुशी के रंग जो लाई
रंग गुलाल नशा भंग का ये मलाल है
होली वो मथुरा की जो शान है
आया होली का त्योहार है आया होली का त्योहार है
जानते है हम इस खेल की हो तुम अनाड़ी
भिगा देंगे आज तुम्हारी ये साड़ी
इस ओर हम वो ओर ह तुम्हारी
देखे ज़रा किसकी कितनी तैयारी
चढ़ा रंग हमपे तुम्हारी है बारी
आओ री आओ री चाहे सारी की सारी
खड़े गबरू हम जवान है
आया होली का त्योहार है आया होली का त्योहार है
आज न करेंगे ये लाज शर्म ये
आज करेंगे रंगों से हवन रे
मोहन मुरारी रंगे अपने ही रंग में
खेलेंगे होली आज आओ सब संग में
बचके रहना ओ गबरू अब बारी हमारी
रंगेंगे हम की न सूरत आये न पहचान तुम्हारी
थामी चोली तो चुनरी उड़ी सीना तान है
आया होली का त्योहार है आया होली का त्योहार है
आओ आओ सखियों री आओ ज़रा भीगो री
रंगों की ये शान है
प्यार का मौसम है खुशियों की बारिश ये
सयाने दिन सुनहरी शाम है
होली आई होली रे आओ हमजोली रे
करे ज़रा रंगों की बौछार रे
होली है रंगों की होली है खुशियों की
आया होली का त्योहार है।