होली और प्रहलाद
होली और प्रहलाद
आया फागुन आई होली
रंगों का त्योहार प्यार की बोली
रंगे सभी एक प्रेम के रंग में
प्रेम और सौहार्द का त्योहार है होली
लाल पीले हरे गुलाबी रंगों से
झोली भर ली
भक्त प्रहलाद विष्णु भक्त थे
राक्षस राज थे हिरण्यकश्यप
पिता को यह मंजूर नहीं था
स्वयं को ईश्वर मानने का जुनून था
पुत्र प्रहलाद एवं सारी प्रजा से
कहते थे मुझको बोलो सभी ईश्वर
पिता के वचन को विष्णु भक्त प्रहलाद
ना माने
एक ही विष्णु की थी उनकी बोली
भक्त प्रहलाद के भक्ति भाव से
पिता रुष्ट हुआ हिरण्यकश्यप
पुत्र को मारने की योजना बनाई
संग उसके बहन भी हो ली
होलिका को वरदान मिला था
अग्नि में ना जलने का
हिरण्यकश्यप के कहने पर
होलीका ने प्रहलाद को गोदी मे
बिठा कर
अग्नि मैं जा होलीका बैठी
प्रहलाद ने विष्णु नाम जपा और
विष्णु ने प्रहलाद को बचाया और
धुं धुं कर होलिका जल बैठी
बाल न बांका हुआ प्रहलाद का
धुं धुं कर होलिका जल बैठी
याद इसी अवसर को करके
मनाया जाता त्यौहार होली
रंगे सभी एक प्रेम के रंग में
प्रेम और सौहार्द का त्योहार है होली
लाल पीले हरे गुलाबी रंगों से
झोली भर ली
प्रेम और सौहार्द का त्योहार है होली।