हँसते रहना
हँसते रहना
हँसते रहना समय की नसीहत है
सपने देखना हर उम्र की ज़रूरत है
देखते रहते वक़्त को क्यूँ इस तरह
कल्पना उम्र या मन की फितरत है!
क्या ऐसा होगा ये सारा जीवन
जैसे सदमा और सहमा ये अंतरमन
नज़र किसकी लगी दुनिया है खौफ मे
अश्क य़ा रस्क सब कूछ हैं इस रोष मे !
कैसे संभले कौन सोच रहा है इतना
जैसे पहले भी होता रहा है ज़ितना
आज की बात करो, इतनी क्या ताकत है
वैसे झेले जैसे समर को है ना रूकना !
अब तो लगता है ये नाम करके भी
क्या पाऊंगा खासे आम बनके भी
चले जाना है सुख या दुख ना भी मिले
तू क्या देखेगा, कोई बदनाम कर दे भी !
आग लगी क्यूँ इस तरह की जले सभी
राग बजी क्यूँ इस तरह की चले सभी
आज कितने भी अजनबी बने वो कोई
जाग रही अक्ल फिर क्यूँ छोड चले सभी !