बेईमानी की रोटी...
बेईमानी की रोटी...
जिसको भी पड़ गई खाने की
बेईमानी की रोटी,
उसका ही ईमान
पाप की भट्टी में जलकर
खाक में मिल जाता है!
ऊपरी ओहदों पर बैठे
(औरों पर ऊँगली करनेवाले)
तथाकथित समर्थ लोग हों
या सबसे नीचले ओहदों पर
काम करनेवाले (लाचार) लोग ही क्यों न हों,
अगर बेईमानी का दिमागी कीड़ा
शरीर में घर बसा डाला,
तो उन लोगों की जेबें तो
भरेंगी, मगर दिल कभी न भरेगा....
और वो लोग बेईमानी की दुनिया में
अव्वल दर्जे के बेईमान बनेंगे --
उसमें कोई दोराय नहीं...!!
ये बेईमानी की रोटी
खाने में तो पहले-पहले
बहुत स्वादिष्ट लगता है,
मगर भरपेट खाते-खाते वो खाद्य पदार्थ
बदहजमी का एहसास दिलाया करता है...
और हम सबको ये मालूम है
कि पाप की रोटी
कभी किसी इंसान की
उदरपूर्ति नहीं कर पाती है...।
इसीलिए हमें अपने जीवनकाल में
ईमान की खिदमत करना ज़रूरी है!
नहीं तो, हम सब बेईमानी की चक्की में
पिस जाया करेंगे...!
अरे, ओ बेईमानों ! ज़रा नज़रें मिलाकर
देखने की हिम्मत तो करो...!