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राहुल द्विवेदी 'स्मित'

Inspirational

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राहुल द्विवेदी 'स्मित'

Inspirational

हंस खड़ा है मौन

हंस खड़ा है मौन

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कौन हिलाये जड़ें झूठ की, कौन करे तकरार...।

लोकतंत्र का चौथा खम्भा, हुआ बहुत लाचार...।।


बीच सड़क पर भिड़ते दिखते, राम और अल्लाह ।

दुविधाओं से भरी पड़ी है, नैतिकता की राह ।

आदि काल से कहीं हो गया, उन्नत भ्रष्टाचार ....।।


कैसा है अब गाय बैल के, जीवन का निर्वाह ।

बिल्ली जी के साथ हो रहा, कुत्ते जी का व्याह ।

खबरों ने भी नये दौर में, भरी नई रफ्तार....।।


सामानों से सस्ता है अब, जीवन का व्यवसाय ।

जन्म-मृत्यु के विषयों में भी, दिखती मोटी आय ।

कलम नहीं है कम दामों में, बिकने को तैयार...।।


सच को आँख दिखाते सारे, हंस खड़ा है मौन ।

दूध और पानी का अंतर, फिर बतलाए कौन ।

कर्तव्यों का विवश आचरण, दुर्गति का आधार....।।


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