हंस खड़ा है मौन
हंस खड़ा है मौन
कौन हिलाये जड़ें झूठ की, कौन करे तकरार...।
लोकतंत्र का चौथा खम्भा, हुआ बहुत लाचार...।।
बीच सड़क पर भिड़ते दिखते, राम और अल्लाह ।
दुविधाओं से भरी पड़ी है, नैतिकता की राह ।
आदि काल से कहीं हो गया, उन्नत भ्रष्टाचार ....।।
कैसा है अब गाय बैल के, जीवन का निर्वाह ।
बिल्ली जी के साथ हो रहा, कुत्ते जी का व्याह ।
खबरों ने भी नये दौर में, भरी नई रफ्तार....।।
सामानों से सस्ता है अब, जीवन का व्यवसाय ।
जन्म-मृत्यु के विषयों में भी, दिखती मोटी आय ।
कलम नहीं है कम दामों में, बिकने को तैयार...।।
सच को आँख दिखाते सारे, हंस खड़ा है मौन ।
दूध और पानी का अंतर, फिर बतलाए कौन ।
कर्तव्यों का विवश आचरण, दुर्गति का आधार....।।
