हमराज
हमराज
बाह्य संसार से वास्ता लगभग टूट गया,
मित्रों का संग भी अब तो छूट गया।
किससे करें हम मन की बात,
यही सोच उठाई कलम इस हाथ।
अपनी बरसों पुरानी आदत अपनाई,
दैनंदिनी फिर से अपनी मित्र बनाई।
अक्षर अंकित करकर जो सुख का अनुभव हुआ,
ऐसा चैन नहीं छिपा ओर कहीं,ना ऐसी कोई दुआ।
लिखने की आदत को सब दिनचर्या में कर लो शुमार,
इससे बेहतर नहीं बन सकता कुछ जीवन का आधार।
लिपिबद्ध करना असीम संतोष प्रदान करे,
विद्वानों के लिखे कथन जीवन का उद्धार करे।
यूँ ही नहीं साहित्य हमें समाज का आईना दिखाता है,
इसीलिए तो लिखा हुआ इतनी शिद्दत से पढ़ा जाता है।
सबमें नहीं होता माना सच को प्रकट करने का साहस,
परन्तु एक कदम बढ़ाकर अपना कर सकते हैं प्रयास।
इसीलिए मैं गर्व से कहती हूँ यह आज,
बन गई कलम मेरी मेरे मन की आवाज,
नये रूप में उभरी है वो मेरे लिए आज,
कहलाती है मेरी, हाँ मेरी वो "हमराज"।