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Sulakshana Mishra

Abstract

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Sulakshana Mishra

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हम तुम

हम तुम

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तुम सपनों के सौदागर

मैं शब्दों की बाजीगर।

तुम सजाते मेले

सपनों के

मैं दिखलाती करतब

शब्दों के।


जो हृदय चुभे

कोई शूल तुम्हें

मैं शब्दों से मरहम देती हूँ।


राह हो तुम्हारी 

जब कंटक भरी

मैं शब्दों से

मखमल कर देती हूँ।


दिख जाए बस 

एक मुस्कान तुम्हारी

तो सब कुछ मैं

न्यौछावर कर देती हूँ।


जो छलक उठे 

एक अश्क तुम्हारा

मीन बिन नीर सी

तड़प उठती हूँ।


मैं नियत से हूँ

तुम्हारी ही

नियति से मैं हारी हूँ।


तुम कृष्ण हो मेरे

पूरे से

मैं राधिका तुम्हारी

अधूरी सी।


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