हम तुम मिले..!
हम तुम मिले..!
हम तुम मिले वक़्त के उस पार
जहां हो इश्क़ की सुबह और इश्क़ की ही शाम
जहां ना हो जुदाई का कोई अवकाश।
पल पल साथ रहें और बातेंं हजार करें
आंखों से आंखे चार करें
बनाए यादें बेहिसाब।
रुक जाए ये वक़्त भी पलभर के लिए
खो जाए हम यादों के शहर में।
रुक जाए वो बहती नदी भी और
नैन भी छलके जैसे बरसे घटा घनघोर।
धड़कने तेज भागे पवन से भी आगे
मुख में शोभा शरम की जैसे रंग गुलाबी कोई!
सांसों के इस संगीत की कुछ अलग ही सरगम होई
बरसे घटा घनघोर कोई,
गाए कोकिल कंठी कोयल
नाचे मयूर थनगनतो कोई,
अवनीत आगमन वसंत का होई
जैसे होली खेले कृष्ना राधिका संग बरसावे प्रेमरंग,
आज सरगम वर्षा और वसंत का होई
समझ ना सके कोई ये प्रेमऋत होई।
हम तुम मिले क्षितिज के उस पार
जहां प्रेम का ही हो प्रकाश और
प्रेम से ही आए हर एक सांस।

