****ए ज़िंदगी***
****ए ज़िंदगी***
अब *हम मिले भी तो ऐसे* ऐ ज़िंदगी
कितनी ही उलझन से भरे ऐ ज़िंदगी।
मन को सुकूँ क्यूँ रोशनी देती नहीं
नेकी के बदले कर नेकी ऐ ज़िंदगी।
लिखी हो क़िस्मत में जुदाई क्या करे
जाने कैसे तब गुजरेगी ऐ ज़िंदगी।
अहसास कुदरत ही कराती हैं हमें
धड़कन पिघलती हैं ऐसे ऐ ज़िंदगी।
उल्फत तड़प जाती ऐसे ही राह में
जीना सिखाती तब "नीतू" ऐ ज़िंदगी।