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Kusum Joshi

Abstract

4.0  

Kusum Joshi

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हम सब वो शक्तिमान हैं

हम सब वो शक्तिमान हैं

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क्या ये अंत है या आरम्भ है,

या एक नया प्रारम्भ है,

क्यों जागता है काल,

भीषण जल रही क्यों ज्वाल,

कैसा ये गहन संकट खड़ा,


मानव क्षुब्ध क्यों असहाय सा,

क्यों सुबकता इंसान है,

क्यों जल रहा शमशान है,

क्यों रो रही है ये धरा,


सब बिखरता क्यों दिख रहा,

ये आपदा किस रूप में,

हम फंस गए किस लूप में,

स्तब्ध से सब मौन हैं,

इसका जिम्मेदार कौन है,


कि दोष किस पर अब मढ़ें,

इतिहास इससे क्या गढ़ें,

किसकी ख़ता किसने किया,

इस बहस से क्या फ़ायदा,

इस त्रासदी को थाम लें,


संयम से सब ही काम लें,

संग में चलें सबको लिए,

इस आपदा के दौर में,

कोई छूट ना जाए कहीं,


इस ज़िन्दगी की दौड़ में,

इस बात पर विश्वास हो कि,

ये एक नया आगाज़ है,

इंसानियत की जीत होगी,


गूंजता परवाज़ है,

जीती कई हैं जंग हमने,

युद्ध ये भी जीत लेंगे,

साथ मिलकर हम सभी,

इस त्रासदी को रोक लेंगे,


हम सामर्थ्यवान हैं सभी,

सक्षम हैं बुद्धिमान हैं,

इस आपदा को रोक लें ,

हम सब वो शक्तिमान हैं।

कि हम सब वो शक्तिमान हैं।


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