हम सब एक है
हम सब एक है
पुत्र एवं पुत्री ने लिया है,
माँ की कोख से ही जन्म,
फिर क्यों हो सकते है बेटे,
गर्व की बात,
और बेटियाँ,
जैसे कोई शर्म।
जो चल सकते है एक साथ,
हो सकते है, जोड़ीदार,
क्यों खड़ी की गई थी उनके बीच,
लिंग-पक्षपात की दीवार?
आज वे दोनों,
आगे बढ़ चुके है,
उन विचारों की दीवार को,
तोड़ चुके है।
हर क्षेत्र में दिखे यह साथ,
चलते है,
डाले हाथों-में-हाथ।
व्यवसाय एवं गृहकार्य संभालने में,
दोनो
ं-ही सक्षम हैं,
यदि ये साथ मिल जाए,
तो ऐसा कोई कार्य नहीं,
जिसके लिए वे अक्षम हैं।
यदि ये दुनिया,
आज आगे है बढ़ी,
तो इन-ही के बलबूते पर,
क्योंकि ये नहीं हैं किसी पर निर्भर,
आज सफल खड़े है,
अपने पैरों पर।
क्षमताएँ एवं अधिकार,
है हम सबके,
एक समान,
हम ही तो है,
इस दुनिया की शान।
इसलिए कहा जाता है-
‘स्त्री एवं पुरुष,
जीवन-रूपी बैलगाड़ी के दो पहिए है,
एक के बिना भी,
उसे चलाना असंभव है।’