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निखिल कुमार अंजान

Inspirational

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निखिल कुमार अंजान

Inspirational

हम खतरे में हैं

हम खतरे में हैं

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काले-काले बादल मंडरा गए,

हम प्रदूषण की जद में आ गए,

हरी-भरी इस धरा पर खुद ही,

हम विनाश का दृश्य रचा गएI


कोई पराली है जलाता कोई,

वाहनों के शोर और जहरीले

धुएँ से हाहाकार मचाता,

विकास की ओर भागते कदम,

हमको रस्ता ही भूला गएI


पेड़ काट-काट कर अपने लिए,

हम इंसान मकान बनाते चले गए,

प्रकृति की कोख से हरियाली मिटा,

इस धरा के प्रति फर्ज भुलाते चले गएI


हम इंसान हैं तो नए मुकाम बनाते चले गए,

प्राकृतिक संसाधनों को कर समाप्त,

अब उसके दोहन का खेल रचा गए,

न शुद्ध हवा है न है शुद्ध पानी,

मैली हो गई नदियाँ, नहरें, नाले;

ये भी हमारी है कारस्तानीI


वो दिन भी अब दूर नजर नहीं आता,

मुँह पर लगा होगा ऑक्सीजन मॉस्क,

नजर आयेगा इंसान कांधे पर गैस के

सिलेंडर का बोझ उठाता,

न चेहरे पर मुस्कान होगी, 

लगता है दिन में रात होगी,

काला-काला सब नजर आएगा,

अगर निरंतर यही क्रिया दोहराएगा,

तो जल्द ही अंत निकट आएगाI


खुद को अब तो चेता ले, 

इस धरा को फिर से वृक्षों से सजा ले,

आने वाली पीढ़ी की खातिर ही सही,

पृथ्वी को मानव-रचित विनाश से बचा लेI


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