हम बनें इंसान
हम बनें इंसान
जग में मानवता की यही पहचान,
सबको स्वयं जैसा ही देवें सम्मान।
रत रहें परहित में न करें कोई नुकसान,
मानव धर्म निभाकर हम बनें इंसान।
अपनी बुद्धि को मानते सब ही विशाल,
चाहते जगत में हो सबसे ही उन्नत भाल।
सराहनीय हो हर कार्य उनका,और जग में
माना जाए उनको एक प्रतिष्ठित विद्वान।
जग में मानवता की यही पहचान,
सबको स्वयं जैसा ही देवें सम्मान।
रत रहें परहित में न करें कोई नुकसान,
मानव धर्म निभाकर हम बनें इंसान।
प्रतिष्ठा को केवल इच्छा की नहीं,
वरन् होती है समर्पण की दरकार।
थोपने की न चीज है होती यह तो,
अनुकरणीय आचरण की पहचान।
जग में मानवता की यही पहचान,
सबको स्वयं जैसा ही देवें सम्मान।
रत रहें परहित में न करें कोई नुकसान,
मानव धर्म निभाकर हम बनें इंसान।
स्वार्थ भाव बाधक है, होता इसका दुष्प्रभाव,
असर कुछ बदलते युग का कुछ संस्काराभाव ।
श्रम करना है तो, करना हो न्यून से न्यूनतम,
प्रतिफल हो सर्वोच्च और हो विशिष्ट शान।
जग में मानवता की यही पहचान,
सबको स्वयं जैसा ही देवें सम्मान।
रत रहें परहित में न करें कोई नुकसान,
मानव धर्म निभाकर हम बनें इंसान।
जड़-चेतन सबसे मिल-जुल बनता है संसार,
अपनी छवि के लिए हम हैं खुद ही जिम्मेदार।
हम सब ही हैं परिजन इस विश्व - कुटुम्ब के,
अपनेपन का भाव जगत में हमारी हो पहचान।
जग में मानवता की यही पहचान,
सबको स्वयं जैसा ही देवें सम्मान।
रत रहें परहित में न करें कोई नुकसान,
मानव धर्म निभाकर हम बनें इंसान।
