हकीकत....
हकीकत....
ये दुनिया भी बड़ी गजब की है,
कुछ करवाती और कुछ अलग दिखाती है।
जब कोई जनम लेता, वो खुद रोता,
पर बाकि दुनिया तब हंसती ही रहती।
उस रोने का मतलब डर भी है,
और अपनी वजूद को साबित करना है।
इस हकीकत को कोई न समझा तब,
और खुशी के लिए हंसते हैं खूब।
पढ़ने लिखने सब जाते हैं तो बिद्यालय,
हकीकत मे क्या होता ज्ञान के उदय?
मास्टरजी कुछ पढ़ाते और कभी डांट देते,
वो तो हकीकत मे हमें परखते रहते।
यूँ कोई अपना दोस्त नहीं बन जाता,
हकीकत मे वो दिलों का मिलाप होता।
जब फूल खिलते कली से बाहर आकर,
खुशबू फैलाते रहते वो कर के किसी का इंतेज़ार।
ये प्रकिति का खेल,न किसका चाल,
हकीकत मे फूल और भामरे के मेल।
जवानी मे पहेली बार जब प्यार होता,
तब नई नई सपने आँखों मे बस्ता।
सपनो को सजाते सजाते खुदको भूल जाते,
कभी कभी फिर कुछ भूल कर बैठते।
दिल के वजह जब मन को सुनते,
हकीकत मे हमसे बड़ी भूल ही होजाते।
और आगे जब सपने भी टूट जाते,
प्यार अधूरा रह जाता, दिल टूट जाते।
तब एक दुशरे को बेवफा कहने लगते,
हकीकत मे दर्द दिल को चुकने लगते।
दिल की धड़कने तेजी से बढ़ने लगते,
और आँखों मे भी आँशु भर आते।
कभी कभी आबेश मे आकर गलतियां करते,
फिर खुदको और समय को कोसते रहते।
जिसको हम प्यार का नाम दिए थे,
हकीकत मे वो कभी प्यार नहीं थे।
पहेली नजर गलत था, हम नहीं समझें,
और हम तब उसे प्यार समझ बैठे।
फिर हम जिन्देगी मे आगे बढ़ते बढ़ते,
हम अपना एक छोटासा सुन्दर संसार बसाते।
पत्नी बच्चों शंग बहुत ख़ुश रहा करते,
कियूँ की उनको हम अपना समझ बैठते।
समय के साथ उम्र भी बढ़ता जाता,
देखते देखते बुढ़ापा आजाता, पता नहीं चलता।
बच्चे अपने अपने खुद की सपने सजाते,
फिर कहीं दूर वो सब चले जाते।
फिर एक बार हम अकेला रहे जाते,
मन ही मन अन्दर बहुत तड़पते रहते।
दर्द मे आँखों से आँशु बहने लगते,
फिर ऐ दुनिया से नाता टूट जाते।
इनसान यहाँ अकेला आया, अकेला चला जाता,
हकीकत मे यहाँ कोई अपना नहीं होता।
हम इस दुनिया मे कुछ करने आये,
हकीकत मे कुछ इसे अभी भूल गए।
अब झूठे शान और मान के खातिर,
हकीकत मे खींचते एक दूसरे का पैर।
अपने अपने स्वार्थ के लिए लढ़ते रहते,
हकीकत मे इन्सानियत को भी भूल जाते।
आओ अब भी समय है, बिगड़ा नहीं,
हकीकत को एक बार जरा समझें सही|
