"हिंदुत्व"
"हिंदुत्व"
हम हिन्दू है!
क्या हम सिर्फ धर्म से हिन्दू हैं या अपने कर्म से भी?
क्या है जो हिंदुत्व को मात्र एक धर्म न होकर एक अलग भावना बनाता हैं!
क्या है जो हमारे भीतर हिंदुत्व की अग्नि जलाता है!
हिंदुत्व मिट्टी है स्वदेश की,
हिंदुत्व हमारी भू है ये,
रग-रग में बहता लहू है ये,
हर घर की इज़्ज़त बहु है ये,
गरिमा दिशा चहुँ है ये!
तलवार उस रानी झाँसी की,
या राम-कृष्ण की धरा कहूँ,
हरिश्चंद्र का सत्य गूँजता,
या हनुमंत की गदा कहूँ,
सनातन पुराण संस्कृति,
या सभ्यता संस्कार कहूँ,
स्वीकारी शहादत मुस्कुराकर,
उनके लहू की बहती धार कहूँ!
चंद शब्दों में क्या बखान करूँ,
हिन्दू शब्द ही स्वर्ण पाखी है,
हाँ-हाँ मैं हिन्दू हूँ,
हर हिन्दू का यही परिचय काफी है!
हर हिन्दू को ये समझना होगा,
बनना है धार अगर,
तलवार की भाँती घिसना होगा!
सूर्य सा चमकना है तो,
सूर्य सा तुझे जलना होगा!
सूर्य का तू तेज बन,
बन शंकर के शीश का चंद्र,
आँच आये जो निज धर्म पर,
कर तांडव रख रूप प्रचंड!
डमरू की वो प्रलय ध्वनि है हम,
जिसमें नाचता भीषण संहार,
अंतर्मन की ज्वाला से जल जाये,
जो भी करें हिंदुत्व पर प्रहार!
तन-मन हिन्दू, जीवन हिन्दू,
हर हिन्दू में दिल अपना है,
जाती-पाती का भेद न जाने,
हिंदुत्व परिचय अपना है!
हम आदम के बेटे हैं,
लहू में आग समेटे हैं,
निडरता का वर लिए,
जन्मे हैं इस धरती पर
अमृत पीकर सब मरते आये,
हम अमर हुए हैं विष पी कर!
अधरों की प्यास बुझाते आये हम,
पी कर अक्सर वह आग प्रखर!
भस्म हो जाती पूरी दुनिया,
जिसको पल भर में ही छूकर।
हम समाज की है धरोहर,
हम समाज के सेवक है,
पार लगाते जो सभी की नैय्या,
उन श्री राम की नौका जिसने चलायी,
हम उस राम राज्य के केवट है!
खंडित हो बिखरा ये देश,
दुर्भाग्य हमारे अपने छूटे,
जिनसे जुड़ने की खातिर संघर्ष किया,
उनके हाथों की हमारे हाथ टूटे!
इतने सालों से जिसका संघर्ष किया,
वो आज़ादी और बटवारा साथ हुआ,
जंग-ए-आज़ादी में जो साथ थे,
वही अवाम हमारे खिलाफ हुआ!
क्या दिन रहा होगा न वो आज़ादी का कि घर में बच्चे के पैदा होने की ख़ुशी और किसी के मरने गम एक साथ आया हो!
हिंदुस्तान जैसा कोई मुल्क आज़ाद नहीं हुआ होगा,
दर्द था बटवारे का या ख़ुशी थी आज़ादी की,
कोई मुल्क न ऐसा होगा आज़ाद,
बटवारे का बजा जिसमें शंखनाद!
था दर्द बटवारे का या ख़ुशी हुई आज़ादी की,
सोच में रफ्तार थी पर नींव रखी बरबादी की!
वसीयतों का सिलसिला फिर सरेआम हुआ,
फिरंगियों से आज़ाद हो अपनेपन में ही बदनाम हुआ,
कुछ यूँ हुए मसले की अब तक न वो हल हुए,
बटकर वो हिंदुस्तान, भारत और पाकिस्तान हुआ!
जिनकी खातिर हाथ उठे,
उन्हीं हाथों से वो हाथ कटे,
बिना हल के मसलें है ये,
या नज़रों के फ़ेर में यूँ ही अपने दिल बटे!
एक जिन्नाह ने बटवारे का घिसा चिराग,
'एक मुल्क निकला',
कुछ हुई काट-बाँट,
और एक हिस्सा अपने हिस्से में वो ले गया!
खबर मिली हैं उसके हिस्से भी तड़पते है,
सिंध-पंजाब-बलोच भी अक्सर झगड़ते है!
हाँ बरबादी से आज़ाद हम भी नहीं है,
पर तरक्की की रफ्तार तेज़ है,
कौन जाने कब आज़ाद हुए थे हम,
14 की रात थी या 15 की नयी सुबह,
चर्चा ये शेष है!
हाँ, रात-दिन के दरमियान,
कई गोश्त ठंडे हुए थे,
दो मुल्कों की सीमाओं में,
अनेकों भाई कटे-जले थे!
हक़ीक़त तो वो अवाम ही जाने,
संघर्ष के बदले ये कैसे नज़राने,
किन उम्मीदों का परिणाम रहा,
जो छोड़ रियासतें,
लगे सियासत अपनाने!
चल रही है और शायद चलती रहेगी,
सियासतें ये मजबूर करेगी,
हिंदुत्व ही है हर भाई का परिचय,
ये सियासतें ही उन्हें दूर रखेगी!
