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Shailaja Bhattad

Abstract Inspirational

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Shailaja Bhattad

Abstract Inspirational

हिन्दी प्रेम

हिन्दी प्रेम

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आंगन की धूप सुहानी लगती है।

 हिंदी में हर बात जुबानी लगती है।


हिंदी का दीपक जब जलता है।

 बच्चा क्या जवान हर इंसान जगता है।


हवा में इत्र की खुशबू-सी सदा साथ रहती है।

गूंज इसकी हवा में हरदम सुनाई पड़ती है।


 वैभव इसका अर्श-सा है।

 जाने क्या इसके शब्दों में अनोखा कर्श-सा है।


हिंदी सहर्ष स्वीकार्य है।

 हिंदी हमें शिरोधार्य  है।

 हिंदी सिर्फ भाषा नहीं

 संस्कृति की समर्थ आचार्य है।

संस्कारों की जमा पूंजी है।

 हर ताले की कुंजी है।

 प्रगाढ़ साहित्य ने खोले कई द्वार हैं।

 हिंदी में साहित्य अपार है।

यही हमारा भूत 

यही हमारा भविष्य है।  

परिणाम बता रहे 

सबने लिया क्या निष्कर्ष है।

जय हिंदी का उद्घोष है। 

 दिख रहा सबमें जोश है।


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