हिजाब
हिजाब
ये जो रुख छुपाया हुआ है किसी खास के लिए,
हिजाब चेहरे पर चढ़ाया है किसी खास के लिए।
कहती हो तुम क्यूँ इतनी संजीदा सी हो गई हूँ मैं,
सुनो ये रंग हया का चढ़ा है किसी खास के लिए।
क्यूँ श्रृंगार नहीं कोई ये उदासी भला क्यूँ छाई हुई,
जानो के मुकर्रर ये सज़ा है किसी खास के लिए।

