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Dev Sharma

Abstract

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Dev Sharma

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हे कृष्ण कितने रूप तेरे

हे कृष्ण कितने रूप तेरे

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तू प्रेम का सागर है,

तू चिन्तन मस्तिष्क का।

तू प्रीत रीत का गागर है,

तू सार राधा इश्क का।।


तू मन्थन सोई आत्मा का है,

तू ज्ञान सब ज्ञानियों का।

तू ग्वाला निरीह गऊवों का है,

तू द्योतक हम सनातनियों का।।


तू कंस के लिए विष की ज्वाला है,

तू मीरा का अमृत प्याला है।

तू ही साक्षात योगेश्वर है जगत में, 

तू ही भक्तों के मद की हाला है।।


तू पृथ्वी पे मानव रुप देवेश्वर है,

,कभी निर्लिप्त योगेश्वर है।

तू ही यशोदा का नन्हा ललना,

तू ही सुदामा साक्षात का ईश्वर है।।


तू सलाखों के पीछे जन्म लेवे, 

तू गोकुल जा पलना झूले।

तू यशोदा की आँख का आँसू, 

तू देवकी आँगन खिल फूल फूले।।


तू गोपियों के मन का मीत, 

तू राधा हृदय बसा प्रियतम है।

तू ही रुक्मणि मन का श्री श्री,

तू ही सत्यभामा का श्रीतम श्रीतम है।।


तू यमुना में पानी बन बहता,

तू झरने में झर झर बहता।

तू ही सागर की है गहराई,

तू वृंदावन में प्राण बन रहता।।


हे मेरे प्रियतम कृष्ण! 

तू साक्षात गीता का स्वरूप।

मेरे शब्द कोष में इतने शब्द नहीं,

जितने प्रभु तेरे हैं रूप।।


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