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Aishani Aishani

Abstract Inspirational

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Aishani Aishani

Abstract Inspirational

हे अन्नदाता..!

हे अन्नदाता..!

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हमारे अर्थ व्यवस्था की जान

हमारे भारतीय किसान

हे हे अन्नदाता..!


तुम्हें प्रणाम,

सुबह की पहली के फूटते ही

निद्रा का कर देते त्याग

तन के कपड़े मैले कुचले

कुछ फटे कुछ उधड़े हुए से

लेकर हल और कुदाली

चल देते हो अपने कर्म स्थल को

क्या गर्मी कैसी ठंडी

धूप खिली हो या फिर मुसलाधार बारिश

जेठ की तपती दुपहरी हो

या पुष की कड़कड़ाती रात


तुमको हमने देखा है करते फ़सल की तैयारी ../रखवाली जग कर सारी सारी रात

जाने कितनी राते यूँ ही गुज़र जाती हैं

करते अपने खेत खलिहानों की रखवाली

ना भूख को भर पेट भोजन

ना प्यास को गला ट्रे करने भर जल

कभी प्राकृतिक आपदा तो कभी

महंगाई की मार तोड़ detir कमर तुम्हारे

पर तुम्हारे हौसलों से ये सब भी हारे


करते हो घर परिवार और नींद की कुर्बानी

ज्यों सीमा पर सैनिक डटे रहते

खाकर दुश्मन औ मौसम की मार

त्यों तुम भी जमे रहते

जब लहलहाती फ़सल खेतों में

खिल जाते हैं तुम्हारे चेहरे भी

रोम रोम करता नित गान

हे अन्न दाता...! तुम्हें प्रणाम.. !


देश की खुशहाली.. / उन्नति बढ़ती

पुष्पित इक जन जन मन

आदुनिक संयंत्रों का भी अब तुमको ज्ञान

कैसे कह दूँ आज के ज्ञान विज्ञान से हो तुम अंजान

हे अन्नदाता..! तुम्हें प्रणाम..,!

मेहनतकस इंसान की तुम पहचान

हरे भरी खेती समृद्धि की -शान

पुलकित वसुंधरा करती नृत्य

फसल जब देते मगन हो तान

कृतज्ञय हैं हमसब.. हे अन्नदाता..!


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