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बिमल तिवारी "आत्मबोध"

Inspirational

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बिमल तिवारी "आत्मबोध"

Inspirational

हे अन्नदाता !

हे अन्नदाता !

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हे अन्नदाता ! हे अन्नदाता !

उठो जागो तुम्हें खेत बुलाता

हल तुझसे पहले जाग गए

बैल खेतों को भाग गए

जिससे तेरा जन्मों से नाता

हे अन्नदाता ! हे अन्नदाता !

उठो जागो तेरा खेत बुलाता,


तेरी धरती क्यूँ रहेगी परती

जो तुझ पर हैं जान छिड़कती

मिट्टी पानी खर पतवार

क्यूँ रहेगी इनसे गुलज़ार

इनको हाथों से उखाड़ फेंकता

हे अन्नदाता ! हे अन्नदाता !

उठो जागो तेरा खेत बुलाता


देख तुझे बहार आती है

बीज नया जीवन पाती है

फ़सलों को इंतजार तेरा है

हाथों  का  दुलार तेरा है

जो तेरे थाप से उछल मचाता

हे अन्नदाता ! हे अन्नदाता !

उठो जागो तेरा खेत बुलाता


निराई गुड़ायी साफ सफ़ाई

हैं हरियाली जिनसे आई

जगत निहाल हो जाता हैं

हर प्राण शीश झुकाता हैं

फ़िर  भी  जो तनिक 

गुमान    न    करता

हे अन्नदाता ! हे अन्नदाता !

उठो जागो तेरा खेत बुलाता


बातों से सरोकार नहीं हैं

किसी से भी तकरार नहीं हैं

परवाह किये बिना चाह के

सत्य समर्पण सेवा भाव से

जो   हैं  ईश्वर  कहलाता 

हे अन्नदाता ! हे अन्नदाता !

उठो जागो तेरा खेत बुलाता

हे अन्नदाता ! हे अन्नदाता !

उठो जागो तुम्हें खेत बुलाता ।।



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