हौसलों के पंख
हौसलों के पंख
अब न कोई रोक सके,न टोक सके,
आसमान में मुझे उड़ने से,
स्वतंत्रता मेरा भी अधिकार,
अब न कोई बेड़ियां डाल सके।
हौसलों के पंख लगाकर,
गगनसम ऊंचाई पाऊंगी,
परम्परवादी सोच को बदलूंगी,
अपना जोश और शक्ति दिखाऊंगी।
बदलूंगी मैं बेटी की परिभाषा,
मैं भी रखती हूँ सम्मान की अभिलाषा,
मैं भी सब कुछ कर सकती हूँ,
क्यों फिर मेरे हिस्से में आए बस निराशा।
बिंदी पायल चूड़ी और कंगना,
आभूषण हैं ये,मेरे उत्साह का गहना,
बेड़ी न बनाओ इन आभूषणों को,
बहुत हुआ अब रुढ़िवादिता का सहना।
मैं नाजुक कमजोर कोमलांगी तनिक नहीं,
कांटो पर चलकर राह बना सकती हूँ,
मैं माँ, बहन, बेटी, बहू बनकर भी,
एक नई परिभाषा अपनी लिख सकती हूँ।