हौसला - कविता
हौसला - कविता
जेब खाली है, छत का साया नही,
मेहनत की है मगर कुछ सुकून पाया नहीं।
कभी यहां वहां भटककर,झोली फैलाकर बैठते हैं,
फिर भी न जाने क्यों खाली हाथ लौट आते हैं।
ना दिवाली देखी,ना अच्छे कपड़े देखे,ना कोई मिठाई खाते हैं,
न जाने क्यों बिना कपड़े,बिना कम्बल
बारिश, धूप, और सर्दी में चुप चाप सो जाते हैं।
ना दोस्त हैं ,ना रिश्तेदार हैं,ना किसी स्कूल का ज्ञान है,,
मानो जादू सा आंखों में हौसले हैं,न जाने कैसे हर पल मुस्कुराया करते हैं।
