हाथ तेरा थामना (ग़ज़ल)
हाथ तेरा थामना (ग़ज़ल)
कल हुआ जो वाक़या, अच्छा लगा।
हाथ तेरा थामना, अच्छा लगा।
जिस्म तो काँपा जो तूने, प्यार से
कुछ हथेली पर लिखा, अच्छा लगा।
देखकर मशगूल हमको इस कदर
चाँद का मुँह फेरना, अच्छा लगा।
घाट रेतीले जलधि के, नम हुए
मछलियों का तैरना, अच्छा लगा।
आसमाँ पर बिजलियों की, कौंध में
बादलों का काफ़िला, अच्छा लगा।
नाम ले तूने पुकारा, जब मुझे
वादियों में गूँज उठा, अच्छा लगा।
बर्फ में लिपटे पहाड़ों, का बहुत
दूर तक वो सिलसिला, अच्छा लगा।
“कल्पना” फिर वो तेरा, वादा प्रियम!
उम्र भर के साथ का, अच्छा लगा