होली
होली
होली तो
तभी हो ली
जब थे हमारे दिन
सुबह सुहानी होती थी
मस्तानी होती दोपहरी
खुशनुमा हुआ करता था शाम
होती थी बेफिक्री वाली ,
सुकून भरी वो रात
न थी कोई जिम्मेदारी
ना था किसी का खोजबीन
बस अपनी धुन में रमें हुए थे
आठों पहर, दिन रात .........
खेला था हमने जब संग में
रंग और गुलाल ..
भींगा है अब तक तन मन
मुखड़े पर है वो गुलाल
लगाया था जो कंपित कर से
उन्होंने पहली बार ............।