हाशिए पर आ गया है
हाशिए पर आ गया है
पिता से भी बड़ा ओहदा
पुत्र जब से पा गया है
एक पूरा युग खिसककर
हाशिए पर आ गया है ।।
ढल रही काया पिता की
दिन, दुपहरी, शाम जैसे,
पर लगन अब भी वही है
रह गए हो काम जैसे ।
कर्म की पगडंडियों पर
अब कुहांसा छा गया है ।।
कह रहा घर, अब समय के
साथ रहने का चलन है
औ' पिता धोती लपेटे
ध्यान पूजन में मगन है ।
पुत्र शिष्टाचार वाली
सूचियाँ पकड़ा गया है ।।
दूर सुधियों की गली में
वो भटकने लग गया है
मन कही पर लकड़ियों
जैसा चिटकने लग गया है ।
कल बहू का एक ताना
लकड़ियाँ सुलगा गया है ।।
आज का दिन भूल जाता
चुप खड़े खामोश कल को,
ज्योंकि घड़ियाँ भूल जाती
गुज़रते हर एक पल को ।
समीकरणों को समय ही
इस कदर उलझा गया है ।।
आज वो हैं, कल न होगा
शेष उनके बाद कोई,
चल रहा उनका निरंतर
शून्य से संवाद कोई ।
डूबता है, पर क्षितिज पर
लालिमा बिखरा गया है ।।