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Chitransh Waghmare

Abstract Drama

3  

Chitransh Waghmare

Abstract Drama

हाशिए पर आ गया है

हाशिए पर आ गया है

1 min
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पिता से भी बड़ा ओहदा

पुत्र जब से पा गया है

एक पूरा युग खिसककर

हाशिए पर आ गया है ।।


ढल रही काया पिता की

दिन, दुपहरी, शाम जैसे,

पर लगन अब भी वही है

रह गए हो काम जैसे ।


कर्म की पगडंडियों पर

अब कुहांसा छा गया है ।।


कह रहा घर, अब समय के

साथ रहने का चलन है

औ' पिता धोती लपेटे

ध्यान पूजन में मगन है ।


पुत्र शिष्टाचार वाली

सूचियाँ पकड़ा गया है ।।


दूर सुधियों की गली में

वो भटकने लग गया है

मन कही पर लकड़ियों

जैसा चिटकने लग गया है ।


कल बहू का एक ताना

लकड़ियाँ सुलगा गया है ।।


आज का दिन भूल जाता

चुप खड़े खामोश कल को,

ज्योंकि घड़ियाँ भूल जाती

गुज़रते हर एक पल को ।


समीकरणों को समय ही

इस कदर उलझा गया है ।।


आज वो हैं, कल न होगा

शेष उनके बाद कोई,

चल रहा उनका निरंतर

शून्य से संवाद कोई ।


डूबता है, पर क्षितिज पर

लालिमा बिखरा गया है ।।


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