हां मैं एक औरत हूं।
हां मैं एक औरत हूं।
रात के अंधेरे में, गहरे सन्नाटों में अगर तुम्हें डर लगे तो डरना नहीं मैं तुम्हारे पीछे हूँ ।
बहकते हुए कदमों को फिसलते हूँ ए लफ़्ज़ों को महसूस करो तो डरना मत मैं तुम्हारे पीछे हूँ ।
ये कोई डर नहीं मेरे मन की आवाज़ है
ये कोई भ्रम नहीं मेरे मन का विश्वास है।
नहीं ,नहीं, अब मैं वो नारी नहीं जो इन भक्षियों से डर जाऊँ
अब मैं वो औरत नहीं जो इनके सामने रोऊँ और गिड़गिड़ाऊँ,
नाल, खंजर सारे औजार साथ लेकर चलती हूँ,
हाँ मैं एक औरत हूँ ये चीख चीख कर कहती हूं।
जख्म खायी थी तब शांत बैठी थी
नोचा था जिस्म तब रूह जलाकर बैठी थी
रोई थी, गिड़गिड़ाई थी, ज्वाला थी तब भी अंदर मगर कुछ ना कह पायी थी,
मैं अबला हूँ , मैं निर्बल हूँ ये सोचकर तिल तिल घबराई थी।
मगर अब शर्म, लाज सब रख दी है दरकिनार
एक हाथ में चुनार और एक हाथ में तलवार
आँचल में शर्म और आँखों में अंगार लेकर चलती हूँ
हाँ हाँ मैं एक औरत हूँ ये चीख चीख़ कर कहती हूं।।।