हाँ, क्षितिज होता है प्रेम
हाँ, क्षितिज होता है प्रेम
प्रेम शोर नहीं करता,
शोर में गुम हो जाता है
समझदार कहलाने जितनी
समझ के कारण,
मूक हो जाता है।
प्रेम क्रिया की
प्रतिक्रिया नहीं माँगता
बस हो जाता है
और फिर कभी रूप नहीं बदलता
निरन्तर फैला रहता है।
आकाश में लालिमा की भांति
और धरती पर
हरीतिमा का भांति।
धरती और आकाश को विभाजित करती
या कहो मिलाती उस पतली सी
रेखा जितना ही होता है प्रेम
हाँ, क्षितिज होता है प्रेम !

