हाल-ए-दिल
हाल-ए-दिल
जाने क्यूँ ना कह पाये
तुमसे अपना हाल-ए-दिल
तेरी रूह में अक्स मेरी धड़कन का
जो अनसुनी रह गई रस्मों के शोर में
तेरे मेरे इश्क के दरम्यान कांटो का गलीचा
रक्तरंजित हृदय पुकार रहा है तुम्हें
कागज के पिंजरे में कैद शब्दों के परिंदे
गुनगुनायेंगे मेरे गीत तेरे कानों में
तेरे इश्क के गुलदस्ते से महकती है जिंदगी
तेरी खिलखिलाहट गूंजती है फिजाओ में
लौट कर आ जाओ मेरी जिंदगी में तुम अगर
मुक्कमल जहाँ मेरा मुक्कदर बन जाये।
