हाईटेक ज़माना सिमटता इंसान
हाईटेक ज़माना सिमटता इंसान
बंजर जमीं सा हो गया है, टाइपराइटर मेरा,
मोबाइल का कैक्टस ही गुलाब इस जहां का,
हाईटेक के ज़माने में, पुराना हो गया है, टाइपराइटर मेरा,
शोर करते थे कभी अल्फ़ाज़ जो, अब है खामोशी का पहरा,
कभी टाइपराइटर पे उंगलियों को शान से दौड़ाया करते थे,
आज आधुनिकता की गर्द में, बेबस किसी कोने में है पड़ा,
अब इसकी बंजर जमीं पर, अल्फा़जों के फूल नहीं खिलते,
मोबाइल की बहार क्या आई, छीन गई हमारी वास्तविकता,
डिजिटल हो गई ये दुनिया, मोबाइल बन गया सबकी जुबां
तकनीकी की उपज है मोबाइल, विज्ञान इसका जन्मदाता,
हर पल इससे चिपका रहता इंसान, खोकर अपनी सुध बुध,
जेल हो गई ज़
िन्दगी मोबाइल पर हंसता, मोबाइल पर रोता,
शान समझता, आज हर इंसान, मोबाइल को हाथ में रखना,
लाख कैक्टस हो मोबाइल में पर इंसान गुलाब ही समझता,
लत ऐसी कि हर रोज एक नया वर्जन पाने की लगी है होड़,
बच्चा, बूढ़ा, जवान हर कोई इस की चकाचौंध में फंस जाता,
भूल कर सारी दुनिया सरपट चलाते हैं उंगली मोबाइल पर,
पल-पल हर इंसान मोबाइल की दुनिया में जा रहा सिमटता,
भाग रही है ये दुनिया, कभी ब्रांड तो कभी फीचर्स के पीछे,
दोस्ती, रिश्तेदारी अब हर कोई आप मोबाइल में ही ढूंढता,
दिन-रात इसके इस्तेमाल से स्वास्थ्य पे हो रहा गलत असर,
पर नुकसान को जानकर भी, हर कोई अनजान बना रहता।