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गवाह बनना चाहता हूँ !

गवाह बनना चाहता हूँ !

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मैं चाहता हूँ बनना गवाह 

हमारे उन्मुक्त देह-संगम का 

मैं चाहता हूँ बनना गवाह 

उस परिवर्तन का जिसमे 

परिवर्तित होते देख सकूँ  

एक हिरणी को सिंघनी होते 

मैं चाहता हूँ बनना गवाह

प्रथम छुअन के स्पंदन का 

जो अभिव्यक्त कर सके 

तुम्हारी इंतज़ार करती 

धड़कनो की गति को 

मैं चाहता हूँ बनना गवाह

तुम्हारी तपती देह से 

उठती उस तपन का जो 

पिघला दे लौह स्वरुप मेरे 

मैं को अपनी उस तपन से 

मैं चाहता हूँ बनना गवाह 

तुम्हारे होठों को थिरक थिरक 

कर यूँ बार बार लरजते देखने का 

मैं चाहता हूँ बनना गवाह

तुम्हारी उष्ण देह से निकलती 

कराहों को अपने कानो से सुनकर 

अपनी आँखों से देख सकूँ  

ठन्डे होते उसी तुम्हारे उष्ण 

देह को जिससे निकले तृप्ति 

का वो कम्पन जिसे पाकर 

तुम हो जाओ पूर्ण !


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