गुरु यश गाथा।
गुरु यश गाथा।
परम श्रद्धेय मात-पिता और गुरु का दर्जा सबसे ऊंचा है।
मात-पिता यह काया है दिनी, गुरु धर्म का मर्म समझाते हैं।।
बोध कराते इस जीवन का, नई चेतना मन में लाते है।
बोध स्वरूप उनकी है काया, शांति के आगार कहलाते हैं।।
भवभूति पल में है नष्ट करते, अंतर का अंधकार मिटाते हैं।
हृदयारविंद में निवास है जिनके, सगरे काज सहज हो जाते हैं।।
प्रेम से आपूरित मानस हो जाता, जो स्मरण गुरु का करते हैं।
मन कुटिलता रहित बन जाता, मनोविकार शांत हो जाते हैं।।
शब्द नहीं गुरु-चरण कमलों की, जो भी मस्तक अपने धरते हैं।
अहैतुकी कृपा तब उन पर होती, कर्ता, अकर्ता का बोध कराते हैं।।
गुरु का प्रकाश अंधकार को भी, दृष्टिगोचर करवाता है।
गुरु की इच्छा पर जो राजी रहते बड़े भाग्यशाली वह कहलाते हैं।।
गुरु सानिध्य अति मंगलमय होता, जो सब का कल्याण करते हैं।
"नीरज" करता गुरु आवाहन, जो प्रभु के दर्शन करवाते हैं।।