गुरु कृपा
गुरु कृपा
मैं अदना सा इंसान
आप हो बड़े महान
मेरी कमियों को
कर ज़ाहिर मुझ पर
मेरी क़ाबिलियत को
दिया निखार
अज्ञान की बेड़ियों को
आपने बना दिया
मेरा कर्मस्थल
कर कमलों की आपके
मुझे मिली धूलि वरदान
आपकी ही नैमत है
जो जाना है
जग को मैंने
खुद को मैंने
आपने कर दिया
अपनी प्रीति से
मेरा मार्ग आसान
अंधकार को मेरे जीवन के
उजाला दिया मुझे ज्ञान का
स्नेह दिया अभिमान का
खुद में जलकर रोशन करना
दूसरों के जीवन को
सच कहूं आपने बढ़ा दिया है
आज मेरा मान
मैं अदना सा सेवक हूं
आपका मेरे गुरुवर
प्रथम नमन मेरा माँ को
फिर आपका है अभिन्दन
सब तो मैंने पाया है आपसे
मैं क्या आपको दे सकता हूं
सूरज को रौशनी दिखाना
कभी न होगा मेरा काम
मेरी बुझी हुई ज़िन्दगी में
उम्मीद का चराग़
जलाने वाले
मेरे पतझर जीवन में
प्रेम सुधा बरसाने वाले
आपकी कीर्ति संसार में
सदैव सूर्य की पताका सी
लहराती रहे
आने वाली पीढ़ियाँ भी
मेरा कथन दोहराती रहे
एक सामान्य से शून्य को
आपने दिशा दी
अपनी गुरु कृपा की
मेरा जीवन धन्य हुआ
जो धूलि बन सका
इन गुरु चरणों की
मैं अज्ञानी मूर्ख
निपट कोरा मेरा मन
भुला देना मेरी भूल को
ग़र भूल से कभी
जाने अनजाने दुःख गया हो
आपका मन....