गुंजन का जोबन
गुंजन का जोबन
मेरे उर को दे गुंजन का जोबन
इक सुन्दर-सी उसकी चितवन।
कभी राहों पर तो कभी बागों में
अँखियों से अँखियाँ मिल ही जाते
हम दोनों के मौन अधर पर
गुलाबी कुसुम खिल-खिल जाते
तनु गात सब मुस्कुराते-से मधुवन।
निमंत्रित कर गई आकर्षण
प्यासे नयन पट झुकते-झुकते
खुद की आहट से भी शर्माते
कदम समक्ष न पलभर रुकते
हो उठते अस्थिर पद स्पंदन।
इक छटा के सम्मोहन में
गये हम भूल अपनी राहें
हो गई निद्रित-निद्रित बेला
जागृत हो उठी फिर चाहें
संज्ञा खोये व्याकुल यौवन।
मेरे उर को दे गुंजन का जोबन
इक सुन्दर-सी उसकी चितवन।