STORYMIRROR

Arun Gupta

Tragedy

4  

Arun Gupta

Tragedy

गुनहगार

गुनहगार

1 min
388


सच बोल दूँ तो, सबका गुनहगार हो जाता हूँ 

ना बोलू तो खुद की नज़रो में ही गिरा जाता हूँ 

मुझे आदत सी है सच को सच कहने की 

मैं नीम को बबूल नहीं कह पाता हूँ 

मैं तो सबका गुनहगार हुआ जाता हूँ। 


समाज में व्याप्त बुराइओं को बताता हूँ 

फिर भी बुराई से दूर नहीं रह पाता हूँ 

चाहता हूँ बहुत कुछ करना 

लेकिन कर नहीं पाता हूँ 

मैं आज खुद के लिए गुनहगार हुआ जाता हूँ।


अपनी ज़रूरत को पूरा करने के लिए, 

दिन रात काम किये जाता हूँ 

फिर भी ज़रूरत पूरी नहीं कर पाता हूँ 

मैं खुद ही गुनहगार हुआ जाता हूँ।


लोग गलत कर के भी गलत नहीं 

हम सही कर के भी गलत होते 

वो लाख गुनाह कर के भी बच जाते 

हम बिना कुछ किये ही गुनहगार होते।




साहित्याला गुण द्या
लॉग इन

Similar hindi poem from Tragedy