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Arun Gupta

Abstract

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Arun Gupta

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नशा उन्मूलन

नशा उन्मूलन

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पिता आपके कदम क्यों लड़खड़ा रहे 

क्या हुआ आपको चक्कर आ रहे 

माँ बोली बेटी तू अंदर जा 

ये आज फिर नशा कर के आ रहे।


मासूम बच्ची बोली माँ, माँ देखो 

ये तो ठीक से चल भी नहीं पा रहे 

शायद इनकी तबियत ठीक नहीं 

ये ठीक से बोल भी नहीं पा रहे ।


माँ गुस्से से लाल हो उठी 

देखी पति की ऐसी हालत 

सहसा बोल उठी 

क्या मिलता है ये नशा करके 

क्यों आते हो ऐसे करके 

क्या तुम्हे ज़रा भी नहीं इस बेटी की चिन्ता 

तुम्हे ऐसा कर के क्या है मिलता 

सब कुछ खत्म हो जायेगा 

ये नशा है ही ऐसा 

ये सिर्फ अपयश लाएगा 

पता नहीं कैसे एक पिता ऐसे 

अपनी बेटी की रक्षा कर पायेगा 

कैसे पालेगा वो अपनी बेटी को 

कैसे वो उससे सम्मान पायेगा ?


बेटी कहती पापा अंदर आओ 

मुँह धोकर खाना खाओ 

माँ, पापा को खाना खिलाओ 

सुन बेटी के यह शब्द 

पिता हुआ हतप्रभ, 


सुनकर पत्नी की बातें 

गुस्से से वो लाल हुआ 

देख बेटी की भोली सूरत 

उसे अपनी गलती का एहसाह हुआ 


नहीं करूँगा कभी नशा, 

अब नहीं होगी कभी ऐसी दशा 

वचन देता हूँ, मैं तुमको 

नहीं देखोगी कभी ऐसे मुझको 


कभी मादक पदार्थो को हाथ नहीं लगाऊंगा 

वचन देता हूँ मेरी गुड़िया को 

खुद भी नशा छोडूंगा, 

दूसरो का भी नशा छुड़ाऊंगा 

मैं मेरी बेटी के लिए, नशा छोड़ 

एक अच्छा पिता बन कर दिखाऊंगा।



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