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Arun Gupta

Tragedy

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Arun Gupta

Tragedy

मेरे जीवन की नाव

मेरे जीवन की नाव

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मैं ऐसी नाव में हूँ, जिसके नाविक को कोई मतलब ही नहीं 

धारा तेज़ है, नाव मुझसे सम्भलती नहीं 

क्या कहूँ मैं नाव के मालिक से 

वो मेरी बात सुनता ही नहीं! 


वो मस्त है अपनी मस्ती में 

मुझे लगता है उसे मुझसे कोई मतलब ही नहीं 

जितना सम्भलना चाहा रहा, मैं नाव 

वो उतनी ही बिगड़ रही !


मुझे डर लगता है, तो अपनों को आवाज़ देता हूँ 

लेकिन मझधार में कोई मेरी आवाज़ सुनता नहीं 

अकेले मुझ से ये नाव अब सम्भलती नहीं

बायीं ओर देखूँ तो दायीं ओर कहानी बिगड़ जाती 

है ये कहानी कैसी जीवन की 

मुझे नहीं समझ आती! 


जीवन के ऐसे मोड़ पर हूँ 

मैं नहीं जानता अब मैं क्या करूँ 

मेरी आदत को मैं बदलना नहीं चाहता 

मुझसे जुडी चीज़ से मैं दूर हो नहीं पाता !

 

मैं उस नाव में हूँ, जिसका नाविक किसी दूसरी ओर देख रहा 

मैं बैठा ही क्यों इस नाव में 

मैं तो बस यही सोच रहा 

मेरी किस्मत में शायद था यह सफ़र 

ना जाने क्या सोच कर निकला घर से, 

हो गया घर से बेघर 

सोचता है अरुण, अब जो हुआ सो हुआ 

खुद नाव को चला और किनारे लगा 

नया रास्ता देख, और नई मज़िल बना! 



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