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Vaibhav Dubey

Romance

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Vaibhav Dubey

Romance

गुनगुनी सी धूप तुम

गुनगुनी सी धूप तुम

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दो जहां में भी नहीं होगी वो सूरत बन गई

चाँद को रब ने तराशा तेरी मूरत बन गई


चांदनी रातों में मोती सा चमकता रूप तुम

सुब्ह सर्दी की सुहानी गुनगुनी सी धूप तुम

आंखों को मैं झील कह दूं तो गलत हो जाएगा

डूबने का तो मजा गहराई में ही आएगा


ये समंदर से जियादा खूबसूरत बन गई

चाँद को रब ने तराशा तेरी मूरत बन गई


होठों पर ठहरी तब्बसुम फूलों पर शबनम लगे

जुल्फों को जब तुम झटक दो इक नया मौसम लगे

ताब सूरज का तुम्हारे जिस्म से कर्जा लिए

मखमली आवाज की ठंडक नरम लहजा लिए


ये तेरी रानाइ कुदरत की जरूरत बन गई

चाँद को रब ने तराशा तेरी मूरत बन गई


क्या बुरा तुझे देखकर गर आईना मगरूर है

आम नथ भी नाक पर तेरी लगे कोहिनूर है

घूमतीं गर्दन पे गालों को मजे से चूमतीं

बालियां कानों में चेहरे की अदा पर झूमतीं


जो घड़ी तेरे साथ गुजरी शुभ महूरत बन गई

चाँद को रब ने तराशा तेरी मूरत बन गई।


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