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Sudhir Kumar Pal

Drama

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Sudhir Kumar Pal

Drama

गुनगुनाती वो सर्दी

गुनगुनाती वो सर्दी

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गुनगुनाती वो सर्दी,

और अलाव की आँच,

मेरा छुटपन में तड़पता दिल,

और अनजान रिश्ते की साँच।


आँखों ही आँखों में होती मुलाकात,

टटोलते जज़्बात कहे थोड़ा और जाँच।

फड़कती शमा और पतंगों की राख़,

शर्मीली मुस्कुराहट जैसे पिघलता काँच।


कतराती नज़रों से होती टालम-टाल,

कनखियों से रह रह कर लपकती हुई बाँच।

दबी रात सनसनी साँसों की सुनवाई,

आनंदी प्रेम तरंग का हिलौरी देखो नाच।


बरबस इश्क़ पे उम्र का तक़ाज़ा नही 'हम्द',

बेशक़ आफ़ताबी है इसका रोमांच।।


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